What are the Accounting Terms?



1- balancesheet एक वर्ष के लेन-देन का लेखा-जोखा होता है। 

2-  इसे वर्ष के अंत में अथवा पहले देखा जा सकता है लेकिन यह पूरे वर्ष के विवरण को देखने के लिए ही तैयार  किया जाता है।

3- बालंकेशीत में बायाँ हिस्सा liability ओर दायाँ हिस्सा assets होता है।

4-  इसे केवल yearly वार्षिक ही प्रयोग किया जाता है।

5- balance sheet सभी दायित्वों और सभी संपतियों को विवरण दिखाता है।


Balance Sheet 


इसके दो भाग होते हैं



बायाँ दायाँ 

दायित्व liabilities

संपति(Assets)

इसमें विभिन्न देनदारी के खातो का विवरण होता है।

इसमें लेनदारी और बचत खातों को विवरण होता है।

लाभ होने पर Profit/loss भी इसी कॉलम में होता है।

हानि होने पर profit/loss इस कॉलम में आ जाता है।

 

capital अकाउंट भी लियाबिलिटी के रूप में इसी तरफ उपलब्ध होता है।

सारे bank अकाउंटस इसी तरफ एसेटस(संपति) के रूप में रहता है।

यह 1 वर्ष के समय के पूरे दायित्वों का विवरण अथवा लेखा-जोखा दिखाता है।

यह एक वर्ष के पूरे प्राप्त धन और संपति का विवरण देता है।

 




Various Accounting Terminology in Hindi पूरी जानकारी आइये Accounting के various Terminology के बारे में detailed में जानते है।।



 1: व्यपार (Trade):- Trade का मतलब ये है  लाभ कमाने के उद्देश्य से किया गया वस्तुओ का क्रय विक्रय ही व्यापार कहलाता है। 


2:व्यवसाय (Business):- कोई एक ऐसा वैधानिक कार्य जो आय income लाभ प्राप्त करने के purpose से किया जाता है वो व्यवसाय (Business) कहलाता है। व्यवसाय एक व्यापक शब्द है जिसके अंतरगर्त उत्पादन ,वस्तुओं, सेवाओ का क्रय विक्रय, बकैं ,बीमा पररवहन कंपनीया आदि आते है। 




3: पेशा (Profession):- आय-व्यय करने के लिए किया गया कोई भी काम या कर साधन जिसके लिए पूरा प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है उसको हम पेशा कहते है। जसै  - Doctor, Teacher, Engineer आदि के द्वारा किए गए काम पेशा कहलाते है। 




4:- मालिक (Owner):- वस्तुवों का समहू जो व्यपार में आवश्यक पूँजी लगाते है, व्यपार का संचालन करते है तथा लाभ व हानि के अधिकारी होते है वो व्यपार के मालिक owner कहलाते है। यदि किसी व्यपार का मालिक कोई एक ही व्यक्ति है तो वह एकाकी व्यपारी (Propwriter) कहलाता है। यदि मालिक दो या दो से अधिक व्यक्ति है तो साझेदार (Partners) कहलाते है। उस कंपनी के अंशधारी मतलब की (Share holder) कहलाते है। 





5: पूंजी (Capital):- व्यपार का स्वामी जो रुपए, माल ,सम्पनत आदि चीजे व्यापार में लगाता है उसको ही हम पूंजी कहते है। Example:- रोहन ने 80000 रु नगद लिए और 20000 रु के माल से एक computer की दुकान खोली तो ऐसी जस्थनत में उसकी इस व्यपार में लगी हुई पूंजी 100000 रु होगी। व्यपार में लाभ होने पर पूंजी बढ़ती है और हानि होने पर पूंजी घटती है। 





6: माल (Goods):- माल उस वस्तु को कहते है जिनका क्रय और विक्रय व्यपार में किया जाता है। माल के अंतर्गत वस्तुओ के निर्माण हेतु प्राप्त सामग्री हो सकते है। Example:- वस्तु विक्रेता द्वारा खरीदा गया कपड़ा, उस व्यपारी के लिए goods माल है। 






7:- आहरण (Drawing):- व्यपार का स्वामी अपने निजी खर्च के लिए समय-2 पर व्यपार में से जो रुपए या किर माल निकलता है तो वह उसका आहरण (Drawing) या निजी खर्चा कहलाता है। 8:- क्रय (Purchase):- वो सभी items जिसको sale करने के purpose से खरीदा जाता है वो Purchase कहलाती है। व्यपार में माल उधार या फिर नगद खरीदा जा सकता है। Read More Articles:-Online Part Time Jobs in Accounting Field पूरी जानकारी हासिल करे।




9:- विक्रय (Sale):- वो सभी items जिनको हम sale करते है वो sale कहलाती है। मतलब की जो माल बेचा जाता है उसको हम विक्रय कहते है। आपको ज्ञात हो कि जो माल नकद बेचा जाता है उसको नकद विक्रय मतलब Cash sale कहते है और जो माल उधार बेचा जाता है उसको हम credit sale कहते है। 





10: क्रय वापसी (Purchase Return/Return Outward):- जब भी खरीदे गए माल में से कुछ माल विलंम्भ कारणों से वापस कर ददया जाता हैतो उसको हम क्रय वापसी (Purchase Return/Return Outward) कहते है। मतलब की Goods Return to the seller for any reason 





11:-ववक्रय वापसी (Sale Return/Return Inword):- जब बेचे गए माल का कुछ भाग विलम्भ कारणों से व्यपारी लौटा देता है तो इस प्रकार की वापसी को हम विक्रय वापसी (Sale Return/Return Inward) कहते है। मतलब की Goods Return by the customer for any reason 





12:- रहतिया (Stock):- वो सभी items जिनको हमने अभी नही बेचा है वो हमारा stock कहलाता है। और दसू री भाषा मे ये कह सकते है कि वो सभी items जो अभी मेरे Godown में है, जिसको मनैं  Sale out नही किया है वो Stock कहलाता है। साल के अंत मे जो माल बिना बिके रह जाता है उसको हम Closing Stock कहते है। और अगले साल के पहले दिन वही माल हमारा Opening Stock कहलाता है। 





13:-कीमत Cost:- जो माल मनैं बेचा है उसकी cost तय है, उसी को हम प्रॉडक्ट cost कहते है। 





14:- लेनदार (Creditor):- वह व्यक्ति या फिर संस्था जो किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को उधार पर माल या सेवाएं बेचती है वो लेनदार (Creditor) कहलाते है। 





15:- देनदार (Debtors):- वह व्यक्ति या किर कोई संस्था जो किसी अन्य व्यक्ति या संस्था से माल या सेवाएं या फिर रुपए उधार देती है वो देनदार (Debtors) कहलाते है। 





16:- दायित्व (Liabilities):- Liabilities हमारी देनदारी होती है। Liabilities हमारी वो Activities होती है जो owner को छोड़कर हमे सबको देनी होती है या किर ऐसा कह सकते है कि वो सभी Activities जो व्यपार को अन्य व्यक्तियों अथवा अपने स्वामी या फिर स्वामी के प्रदत चुकाने होते है। वो दायित्व (Liabilities) कहलाते है। दायित्व (Liabilities) मुख्य दो प्रकार की होते है। 

1:-स्थायी दायित्व (Long term/Fixed Liabilities): 
2:-छोटे दायित्व (Short Term/ Current Liabilities): 





17:- सम्पति (Assets):- हमारे व्यपार में समस्त वस्तुवें जो व्यपार संचालन में सहायक होती है वो संपति (Assets) कहलाती है। सम्पति (Assets) मुख्य दो प्रकार की होिी है। 

1:- अचि सूंपवि (Fixed Assets) 
2:- चि सम्पति (Current Assets) 





18:-खर्चे Expenditure:- ये वो खर्चे होते है जिनके लिए मनैं  pay करा होता है, ऐसे खर्चे जिसको मनैं pay किया और लाभ लिया। 





19:- व्यय (Expenses):- हमारे माल के उत्पादन और उसे बेचने में जो भी खर्चे होते है वो व्यय (Expenses) कहलाते है। Example:- Electricity Expenses, Rent , Salary etc. व्यय (Expenses)  मुख्य दो प्रकार के होते है। 

1:- प्रत्यक्ष व्यय ( Direct Expenses) 
2:- अप्रत्यक्ष व्यय ( Indirect Expenses) 




1:- प्रत्यक्ष व्यय ( Direct Expenses):-ये वो खर्चे होते गई जिन्हें व्यपारी माल खरीदतें वक़्त करता है। ( Direct Expenses) वस्तु की लागत का एक हिस्सा होता है। गाड़ी भाड़ा,मजदूरी, दुकान कि प्रयुक्त बिजली आदि प्रत्यक्ष व्यय ( Direct Expenses) के अंतगयत आते है। 



2:- अप्रत्यक्ष व्यय ( Indirect Expenses) वो सभी expenses जिनका संबध वस्तु के क्रय या उसके निर्माण से ना होकर वस्तु की बिक्री या क्रय-विक्रय संबधी होता है।अप्रत्यक्ष व्यय ( Indirect Expenses) कहलाते है। इसके अंतर्गत वो expenses है जैसे कि विज्ञापन,विक्रय पर गाड़ी भाड़ा,बिजली का बिल,Discount इत्यादि। 




20:- राजस्व (Revenue):-Goods या service को market में sale करने पर उससे जो प्राप्त होती है उसको ही हम राजस्व (Revenue) कहते है। 






21:- छूट (Discount):-व्यपारी द्वारा अपने customers को दी जाने वाली रियासत ही Discount कहलाती है। 






22:- Bad Debts:- व्यपारी को उधार बेचे गए माल की पूरी रकम Debtors यानी देनदारों से प्राप्त हो जाये ये आवश्यक नही है इसलिए इस उधार की रकम में से जो वसूल नही हो पाती है उसे व्यपारी का Bad Debts कहते है। 






23:- Voucher:- व्यपार संबंधी सभी व्यवहार व लेन देन के प्रमाण के लिए जो documents दिये या किर लिए जाते है उन्हें हम voucher कहते है। business में जो भी transactions होते हैउनको टैली सॉफ्टवेयर में record करने के लिए हम vouchers का उपयोग करते है। 






24:- Balance sheet:- कंपनी का statement, जो कंपनी की सारी details आपको बताता है उसी को हम Balancesheet कहते है। Balance sheet एक written स्टेटमेंट होता है, जो कंपनी के details को दिखाता है कि कंपनी profit कर रही है या फिर loss balance sheet को हम साल के end में बनाते है।






Post a Comment

0 Comments