कहानी
1-
अनुज सकुन गाँव का लड़का है उसकी पढ़ाई अभी जारी है। वह रोज सुबह खेलने जाता है। उसके भाई ने कक्षा 12वीं की परीक्षा पास कर ली है। सतीश, अनुज का दोस्त है। वह रोज की तरह आज सुबह भी दूध देने बाजार गया हुआ है। उसकी पढ़ाई अच्छी चल रही है क्यूकि उसकी मम्मी उसे रोज ट्यूशन भेजती है। अनुज और सतीश रोज अभ्यास करते हैं। उन दोनों की अच्छी पढ़ाई पर उनके गुरुजी को गर्व है।
2-
एक छोटी सी लड़की थी, उसका नाम था परी, वो बात-बात पर गुस्सा होती थी। उसकी मां उसे हमेशा समझाती रहती कि परी बेटा, इतना गुस्सा करना अच्छी बात नहीं है, लेकिन फिर भी उसके स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया। एक दिन परी अपना होमवर्क करने में व्यस्त थी। उसकी टेबल पर एक सुंदर-सा फूलों से सजा पॉट रखा था। तभी उसके छोटे भाई का हाथ उस पॉट से टकराया और गिरने पर उसके कई टुकड़े हो गए। अब क्या, परी गुस्से से बौखला उठी। तभी वहां उसकी मां ने एक आईना लाकर उसके सामने रख दिया। अब गुस्से से भरी परी ने अपनी शक्ल आईने में देखी, जो कि गुस्से में बहुत ही बुरी लग रही थी। अपना ऐसा बिगड़ा चेहरा देखते ही परी का गुस्सा छू-मंतर हो गया। तब उसकी मां ने कहा, देखा परी! गुस्से में तुम्हारी शक्ल आईने में कितनी बुरी लगती है, क्योंकि आईना कभी झूठ नहीं बोलता। अब परी को पता चल गया था कि गुस्सा करना कितना बुरा होता है। तभी से उसने गुस्सा न करने का एक वादा अपने आप से किया।
3-
एक बार एक बूढ़ा व्यक्ति मृत्यु के कगार पर था। उनके पुत्र बहुत आलसी थे। बूढ़े ने सोचा मेरे मृत्यु के बाद उनका क्या होगा? उसने सभी को पुत्रों को बुलाया और कहा, मैंने मैदान में एक बड़ा खजाना गाड़ दिया है। कुछ दिनों बाद बूढ़े व्यक्ति की मृत्यु हो गई। तब उनके पुत्रों ने खेत में खजाने की बहुत खोज की, लेकिन असफल रहे। तब गांव के एक बूढ़े आदमी द्वारा उन्हें खेत में बीज बोने की सलाह देने पर उन्होंने कुछ बीज बोए। कुछ समय के पश्चात उन्हें गेहूं की बंपर फसल मिली। उन्हें यह सोने की तरह लग रहा था। यही बूढ़े आदमी का छिपा हुआ खजाना था।
4-
पुराने समय की बात है। एक खरगोश और एक कछुआ का सामना हुआ। दोनों ने दौड़ लगाने का फैसला किया। खरगोश बहुत तेज था, वह बहुत तेजी से भागा जा रहा था और कछुआ काफी पीछे था। खरगोश ने कछुए को अपने काफी पीछे देखा तो सोचा कि क्यों न एक झपकी ले ली जाए। खरगोश एक पेड़ के नीचे सो गया। इस बीच, कछुआ वहां पहुंचा जहां खरगोश सो रहा था। खरगोश को सोता छोड़ कछुआ आगे निकल गया और विजय पद पर पहुंच गया। खरगोश जागा तो बहुत दुखी हुआ, पर कुछ कर न सका।
5-
एक चरवाहे का लड़का बहुत शरारती था। वह पशुओं को चराने के लिए जंगल ले जाता था। एक दिन वह चिल्लाया- भेड़िया आया, भेड़िया आया। उसे बचाने के लिए सभी गांव वाले दौड़ पड़े। जब वे ढूंढने निकले तो वहां कोई भेड़िया नहीं था। शरारती लड़का गांव वालों को परेशान होते देख जोर-जोर से हंस रहा था। अगले दिन उसने फिर वही काम किया। गांव वाले मदद के लिए आए, लेकिन वह उनकी मूर्खता पर हंसता था। एक दिन हकीकत में वहां भेड़िया आया। अब लड़के ने मदद के लिए बहुत शोर मचाया, चीखा-चिल्लाया, लेकिन अफसोस ! कोई भी गांव वाला उसे बचाने नहीं आया। अंतत: भेड़िया ने लड़के को मार डाला।
6-
एक गुलाम व्यक्ति था। उसका मालिक बहुत ही निर्दयी था। इसलिए गुलाम जंगल में भाग गया। वहां उसने एक शेर देखा। शेर को दर्द हो रहा था। उसके पंजे में एक कांटा फंसा हुआ था। गुलाम व्यक्ति शेर के पास गया और उसका कांटा निकाल लिया। अब शेर का दर्द कम हो गया। एक दिन गुलाम को उसके मालिक ने पकड़ लिया। उसका मालिक उसे भूखे शेर का सामना करने का आदेश देता है। गुलाम समझ चुका था कि उसकी मृत्यु निश्चित है। लेकिन क्या आश्चर्य हुआ, जब शेर दहाड़ता हुआ आया लेकिन उसने गुलाम को नहीं बल्कि उसके मालिक को मार डाला। यह वही शेर था जिसकी गुलाम ने जान बचाई थी
7-
एक टोपी बेचने वाला गरीब आदमी एक जंगल से गुजर रहा था। दोपहर का समय था। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया, थकान की वजह से वह उसी पेड़ की छाया में सो गया। उसी समय में कुछ बंदर पेड़ से उतरकर नीचे आए और उसकी सारी टोपियां ले ली। जब टोपी बेचने वाले की आंखें खुली तो वह अपनी टोपियां न पाकर वह चौंक गया। फिर उसने अपना दिमाग लगाया और अपने सिर की टोपी निकाली और नीचे फेंक दी। जब बंदरों ने यह हरकत देखी तो उन सभी ने भी ऐसा ही किया। आखिरकार टोपी वाले की होशियारी काम आई और उसे सारी टोपियां मिल गई, उन सबको इकट्‍ठा करके वो अपनी अगली यात्रा पर निकल गया।
8-
एक बार एक कौए को रोटी का एक टुकड़ा मिला, इसे वह अपनी चोंच में रख रहा था। वह एक पेड़ पर बैठा था। अचानक एक लोमड़ी वहां आई तो उसने कौए की चोंच में रोटी का टुकड़ा देखा। लोमड़ी बड़ी चालाक थी, उसने कौए से कहा, आपकी आवाज बहुत ही अच्छी और प्यारी है, कृपया गीत गाकर सुनाएं।' मूर्ख कौआ अपनी तारीफ सुनकर बहुत खुश हुआ और गाने के लिए जैसे ही अपना मुंह खोला। रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया। लोमड़ी रोटी का टुकड़ा उठाकर भाग गई और कौआ मूर्ख बन गया।
9-
एक बहुत बूढ़ा आदमी था। उसके 4 बेटे थे। बूढ़ा अपने बेटों को लेकर बहुत चिंतित था, क्योंकि सभी बेटे एक-दूसरे के विरोधी थे और आपस में लड़ते रहते थे। एक दिन बूढ़े ने उन सभी को अपने पास बुलाया और सभी को लकड़ी का एक-एक टुकड़ा दिया और उसे तोड़ने के लिए कहा। सभी ने एक झटके में लकड़ी तोड़ दिया। फिर बूढ़े ने उन्हें लाठी के कुछ टुकड़ों को इकट्ठा एक साथ बांधकर उनको दिया। लेकिन एक भी बेटा उन लाठियों को तोड़ न सका। अब जाकर उन्हें एकता की ताकत समझ में आई। फिर वे मिलजुल कर रहने लगे
10-
एक कौआ बहुत प्यासा था और पानी की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। अचानक उसको एक घड़ा नजर आया। उसे उसके थोड़ा पानी दिखाई दिया। उसने अपनी प्यास बुझाने की काफी कोशिश की, लेकिन घड़े में बहुत कम पानी होने के कारण पानी पी न सका। कौआ ने कुछ सोचा और वह कुछ कंकड़ अपनी चोंच में भरकर लाया और घड़े में गिराता गया, इस तरह मटका कंकड़ों से भर गया और पानी ऊपर आ गया। अब कौए ने अपनी प्यास बुझाई।
11-
एक बार अंकित नाम का बच्चा अपने पिता के साथ मंदिर गया था। उसकी उम्र महज सात साल थी। अचानक वह मंदिर के बाहर बनी शेर की मूर्ति देखकर चिल्लाया, और उसने अपने पिता से कहा,"भागो पिता जी वरना यह शेर हमें खा जाएगा।" फिर उसके पिता ने उसे शांत किया और कहा, " यह सिर्फ एक मूर्ति है और इससे हमें कोई खतरा नहीं है।" यह सुनकर अंकित ने कहा- यदि यह मूर्ति हमें कोई नुक़सान नहीं पहुंचा सकती तो भगवान की मूर्ति हमें कोई आशीर्वाद कैसे दे सकती है? उसकी बात सुनकर उसके पिता नि: शब्द हो गए और उसकी बात का कोई जवाब नहीं दे पाए। उस दिन से उसके पिता ने भगवान को मूर्तियों की जगह इंसानों में ढूंढना शुरू कर दिया, ओर कहा कि "मैं भगवान तो नहीं ढूंढ पाया लेकिन इस बीच मैंने इंसानियत ढूंढ ली ।
12
जग्गू ने चुन्नू हिरण से इतनी तेज़ भागने का कारण पूछा। चुन्नू हिरण ने उसको सारी बात बताई। जग्गू बन्दर ने कहा की मै तुमको बताना भूल गया था की वह एक खुनी झील है। जिसमे जो भी शाम के बाद जाता है वह वापिस नहीं आता।
लेकिन उस झील में मगरमच्छ क्या कर रहा है। उसे तो हमनें कभी नहीं देखा। इसका मतलब वह मगरमच्छ ही सभी जानवरों को खाता है जो भी शाम के बाद उस झील में पानी पिने जाता है।
अगले दिन जग्गू बन्दर जंगल के सभी जानवरों को ले जाकर उस झील में गया। मगरमच्छ सभी जानवरों को आता देखकर छुप गया। लेकिन मगरमच्छ की पीठ अभी भी पानी से ऊपर दिखाई दे रही थी।
सभी जानवरों ने कहा की यह पानी के बाहर जो चीज़ दिखाई दे रही है वह मगरमच्छ है। यह सुनकर मगरमच्छ कुछ नहीं बोला। चीकू खरगोश ने दिमाग लगाया और बोला नहीं यह तो पत्थर है। लेकिन हम तभी मानेंगे जब यह खुद बताएंगा।
यह सुनकर मगरमच्छ बोला की मै एक पत्थर हूँ। इससे सभी जानवरों को पता लग गया की यह एक मगरमच्छ है। चीकू खरगोश ने मगरमच्छ को कहा की तुम इतना भी नहीं जानते की पत्थर बोला नहीं करते। इसके बाद सभी जानवरों ने मिलकर उस मगरमच्छ को उस झील से भगा दिया और खुशी खुशी रहने लगे।Moral of the storyसीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की यदि हम किसी भी मुसीबत का सामना बिना घबराये मिलकर करते है तो उससे छुटकारा पा सकते है।
13
एक खरगोश अपना सामान उठाकर खुशी-खुशी जा रहा था उसे रास्ते में एक हिरन मिला । हिरन ने कहा - क्या बात है खरगोश मियाँ, बड़े खुश नजर आ रहे हो ।
मेरी शादी हो गई है । खरगोश बोला । बड़े भाग्यशाली हो भाई, हिरन ने कहा ।
शायद नहीं, क्योंकि मेरी शादी एक बहुत ही घमंडी खरगोशनी से कर दी गई है ।
उसने मुझसे बड़ा घर, ढेर सारे पैसे और कपड़े माँगे, जो मेरे पास नहीं थे । खरगोश ने उत्तर दिया ।
बड़े दुःख की बात है न , हिरन ने धीरे से कहा ।
शायद नहीं, क्योंकि मैं उसे बहुत चाहता हूँ । इसीलिए मैं खुश हूँ कि वह मेरे साथ तो है । खरगोश बोला ।
वाह, बड़े भाग्यशाली हो भाई, हिरन खुश होकर बोला ।
शायद नहीं भैया, क्योंकि शादी के अगले ही दिन मेरे घर में आग लग गई, खरगोश ने कहा ।
अरे रे। ......बड़े दुःख की बात है, हिरन बोला ।
शायद नहीं, क्योंकि मैं अपना सामान बाहर निकाल लाया और उसे जलने से बचा लिया, खरगोश बोला ।
अच्छा बड़े भाग्यशाली हो भाई, हिरन ने लंबी साँस छोड़ते हुए कहा।
नहीं भाई, शायद नहीं, क्योंकि जब आग लगी तो मेरी पत्नी अंदर सो रही थी ।
खरगोश ने उदास स्वर में कहा । ओहो, ये तो बड़े दुःख की बात है, हिरन बोला ।
नहीं, नहीं बिलकुल नहीं, क्योंकि मैं आग में कूद पड़ा और अपनी प्यारी पत्नी को सही-सलामत बाहर निकाल लाया ।
और जानते है सबसे अच्छी बात क्या हुई । इस घटना से उनसे सीख लिया है कि सबसे प्यारी चीज है जिंदगी ।
पैसा, घर और कपड़े हों या न हों लेकिन आपस का प्यार होना बहुत जरूरी है! खरगोश ने मुस्कुराते हुए कहा ।
14
श्रवण अपने माता पिता को तीर्थ करवाने हेतु एक कावड़ तैयार करता हैं जिसमे एक तरफ शांतुनु एवम दूसरी तरफ उनकी पत्नी बैठती हैं . और कावड़ के डंडे को अपने कंधे पर लादकर यात्रा शुरू करता हैं . उसके हृदय में माता पिता के प्रति इतना स्नेह हैं कि उसे उस कावड़ का लेषमात्र भी भार नहीं लगता . अपने पुत्र के इस कार्य से माता-पिता का मन प्रसन्नता से भर उठता हैं और वे पुरे रास्ते अपने पुत्र श्रवण को दुआयें देते चलते हैं .
तीर्थ करते समय जब वे तीनों अयोध्या नगरी पहुँचते हैं, तब माता पिता श्रवण से कहते हैं कि उन्हें प्यास लगी हैं . श्रवण कावड़ को जंगल में रखकर, हाथ में पत्तो का पात्र बनाकर, सरयू नदी से जल लेने जाता हैं . उसी समय, उस वन में अयोध्या के राजा दशरथ आखेट पर निकले थे और उस घने वन में वह हिरण को शिकार बनाने के लिए उसके पीछा कर रहे थे, तब ही उन्हें घने जंगल में झाड़ियों के पार सरयू नदी से पानी के हल चल की आवाज आती हैं , उस हलचल को हिरण के पानी पिने की आवाज समझ कर महाराज दशरथ शिकार के उद्देश्य से तीर चला देते हैं और उस तीर से श्रवण कुमार के हृदय को आघात पहुंचता हैं जिससे उसके मुँह से पीड़ा भरी आवाज निकलती हैं जिसे सुन दशरथ स्तब्ध रह जाते हैं और उन्हें अन्हौनी का अहसास होता हैं और वे भागकर सरयू नदी के तट पर पहुंचते हैं, जहाँ वे अपने तीर को श्रवण के ह्रदय में लगा देख भयभीत हो जाते हैं और उन्हें अपनी भूल का अहसास होता हैं . दशरथ, श्रवणकुमार के समीप जाकर उससे क्षमा मांगते हैं, तब अंतिम सांस लेता श्रवण कुमार महाराज दशरथ को अपने वृद्ध नेत्रहीन माता पिता के बारे में बताता हैं और कहता हैं कि वे प्यासे हैं उन्हें जाकर पानी पिला दो और उसके बाद उन्हें मेरे बारे में कहना और इतना कह कर श्रवण कुमार मृत्यु को प्राप्त हो जाता हैं . भारी ह्रदय के साथ महाराज दशरथ श्रवण के माता पिता के पास पहुँचते हैं और उन्हें पानी पिलाते हैं . माता पिता आश्चर्य से पूछते हैं उनका पुत्र कहा हैं ? वे भले ही नेत्रहीन हो, पर वे दोनों अपने पुत्र को आहट से ही समझ लेते थे . माता पिता के प्रश्नों को सुन महाराज दशरथ उनके चरणों में गिर जाते हैं और बीती घटना को विस्तार से कहते हैं . पुत्र की मृत्यु की खबर सुनकर माता पिता रोने लगते हैं और दशरथ से उन्हें अपने पुत्र के पास ले जाने को कहते हैं . महाराज दशरथ कावड़ उठाकर दोनों माता पिता को श्रवण के शरीर के पास ले जाते हैं . माता पिता बहुत जोर-जोर से विलाप करने लगते हैं, उनके विलाप को देख महाराज दशरथ को अत्यंत ग्लानि का आभास होता हैं और वे अपनी करनी की क्षमा याचना करते हैं लेकिन दुखी पिता शांतुनु महाराज दशरथ को श्राप देते हैं कि जिस तरह मैं शांतुनु, पुत्र वियोग में मरूँगा, उसी प्रकार तुम भी पुत्र वियोग में मरोगे . इतना कहकर दोनों माता- पिता अपने शरीर को त्याग मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं .
महाराज दशरथ श्राप मिलने से अत्यंत व्याकुल हो जाते हैं और कई वर्षो बाद जब उनके पुत्र राम का राज्य अभिषेक होता हैं, तब माता कैकई के वचन के कारण राम, सीता और लक्षमण को चौदह वर्षो का वनवास स्वीकार करना पड़ता हैं और इस तरह महाराज दशरथ की मृत्यु भी पुत्र वियोग में होती हैं . अपने अंतिम दिनों में उन्हें शांतुनु के कहे शब्द याद आते हैं और वे राम के वियोग में अपना शरीर त्याग देते हैं .
हमें यह कहानी यही शिक्षा देती हैं कि बिना लक्ष्य को देखे, उसे भेदना कई बार आपको गलती का पात्र बना देता हैं और आप ना चाहते हुए भी दूसरों के दुःख का कारण बन जाते हैं .
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यह थी श्रवण कुमार की कहानी, अपनी माता पिता भक्ति के कारण ही श्रवण कुमार पुराणों में जीवित हैं . श्रवण कुमार सदैव अपनी मातृभक्ति के लिए जाने जाते हैं, उन्ही की कहानी सुनाकर माता पिता अपने बच्चो को संस्कारित करते हैं .
रामायण महाकाव्य में ऐसे कई चरित्र हैं जो हमें वास्तविक जीवन के कर्तव्यों का ज्ञान देते हैं और हमें धर्म एवम कर्म का सही मार्गदर्शन देते हैं . ऐसी ही अन्य कहानियों के लिए मास्टर पेज रामायण महाभारत कहानी पर क्लिक करे एवम अन्य शिक्षाप्रद कहानियों के लिए प्रेरणादायक हिंदी कहानी पर क्लिक करें .
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